धन-दौलत हवस के लालच मैं इंसान अपनी इंसानियत तक भूल चुका है आये दिन यह समाचार मिल ही जाते है कि कभी बाप अपनी बेटी को पति अपनी पत्नी को रुपयों के खातिर बेच देता है धन-दौलत के लालच ने भाई-भाई को मरवा दिया। पैसो के लिए मानव क्या नहीं कर रहा है . इन सारे कामो को देखकर भगवान् भी शर्मिंदा हो जाये परन्तु इंसान नहीं होता, एक तरह से रूपए पैसे ही कलियुग का भगवान है .लालच बढऩे पर मनुष्य अन्याय और अनीति से धन कमाने लगता है। उसके जीवन में अशांति, तनाव व परेशानी आती है। लालच की मनोवृत्ति से मुक्ति पाना कठिन है। मैं मानती हु की कुछ लालच मानव के विकास के जरुरी है .लेकिन अति तो हर जगह बुरी है इसलिए विकास करे लेकिन ये भी देख ले की किसी और का नुकसान तो नहीं हो रहा है .आप भी मानव मूल्य को समझ कर तथा सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए जीवन का निर्वाह कर सकते है आखिर पैसा इतना बड़ा तो नहीं कि एक इंसान दुसरे को बेच या जान से ही मार डाले अगर आप के हर कॉलोनी मैं एक इस तरह के अत्याचार रोकने के लिए एक संगटन बना ले तो भी काफी इसी तरह के कई अपराध रुक जायगे ,आप धर्म के नाम पर या रतजगा करने के लिए मण्डली बना सकते है लेकिन जिस से मानव हानि या अपराध रोक सके उस मण्डली बनाने का तो आपके पास कोई टाइम नहीं होता है शायद यह बात सही है की इंसान इंसान के बीच निश्छल प्रेम और सच्ची आस्था मिट ही गयी है .
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