पांच दिन की बारिश का सामना करने के बाद कोल्कता से जबलपुर वापस आई .तो गर्मी से बुरा हाल हो गया .कोलकाता में आमों का मोसम है .मुझे भी आम
खाना काफ़ी पसंद है .सो दिनभर आम और बैंक का काम दोनों मै मस्त कोलकाता की सैर करती रही .लेकिन कहते है ना अति हर जगह बुरी होती है .अब आम तो खाये लेकिन परिणाम भी भुगतान करना था सो जबलपुर आकर पुरे शरीर मै फुन्सिया हो गयी ,पुरे तीन दिन ऑफिस से दूर रही अब ऑफिस के काम का नुक्सान हुआ ...लेकिन कोलकाता में आम का मज़ा लिया उससे बचपन की यादे ताज़ा हो गयी जब में आमो के बगीचों मे जाकर आम खाने में लगी रहती थी .आज ना वे बगीचे है .ना वो बचपन के दिन ....बगीचों की जगह आज मॉल और बिल्डिंग ने ले ली और बचपन भी जाने कहा खो गया ..ऑफिस और घर की भागदोड़ में कब समय निकल गया पता ही नहीं चला अब तो सिर्फ यादे ही यादे रह गयी है खैर मुकेश के गाये गीत को गुनगुना कर बचपन की यादे ताज़ा कर लू
आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम गुज़रा ज़माना बचपन का हाय रे अकेले छोड़ के जाना और ना आना बचपन का आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम वो खेल वो साथी वो झूले वो दौड़ के कहना आ छू ले हम आज तलक भी ना भूले |
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nice post for mango
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